मंगलवार, 23 सितंबर 2014

'तमाशा खत्म मियां अब तो मुखौटा उतार दो!'


पुराने समय से,मुखौटे का प्रयोग अलग-अलग समारोहों या यूँ कहे कि मनोरंजन के लिए किया जाता है। अक्सर नाटक व तमाशा दिखाने के लिए लोग इन मुखौटे के माध्यम से किसी भी पात्र को बड़ी सरलता से दिखाया जाता। क्या शेर,क्या भेड़िया,क्या इंसान और क्या भगवान इस मुखौटे की मदद से कलाकार बड़ी आसानी से लोगों को अपने नाटक व तमाशे की दुनिया में शामिल कर लेते है। लेकिन जैसे-जैसे हमारी सभ्यता विकास की ओर बढ़ने लगी और मनोरंजन के कई सारे साधन आए,वैसे-वैसे मुखौटों का इस्तेमाल कम होता चला गया।
           यूँ  तो अब नाटक व तमाशे से मुखौटों की झलकी कम देखने को मिल रही है,लेकिन दुर्भाग्यवश! इन्सान के व्यक्तित्व में इन मुखौटों की झलकी खूब देखने को मिल जाती है। इंसानी व्यक्तित्व में मुखौटा,जिसे इंसान का दोहरा चरित्र भी कहते है। वैसे तो बाज़ार से मुखौटे कम हो रहे है ,लेकिन इंसानों में बड़ी तेज़ी से इनका बाज़ार बढ़ रहा है। दोहरे चरित्र वाले लोगों के मुखौटों को देखा नहीं जा सकता है और कभी ना दिखने वाले इंसानी मुखौटे का इस्तेमाल लोग कभी किसी के मनोरंजन या किसी के चहेरे पर मुस्कान लाने के लिए नहीं करते।बल्कि इसका इस्तेमाल किया जाता है,एक झूठी शान बना कर दूसरों की जिंदगी से खिलवाड़ करने के लिए और मानवता को शर्मसार करने की हर हद पार करने के लिए। इसलिए इन मुखौटों को दुनिया का 'सबसे खतरनाक मुखौटा' कहना गलत नहीं होगा।
         आज के समय में ऐसी मुखौटे वाली ज़िन्दगी जीने वाले लोगों की तादाद बढ़ रही है। ये हमेशा दोहरा जीवन जीते है, एक जीवन, वो जिसमें वो समाज के एक विशेष वर्ग में अपनी चमचमाती छवि बनाते है और दूसरा वो जहाँ वे इस चमक के निचले अंधेरों में अपनी काली करतूतों को अंजाम देते है। लिंगभेद से परे, या यूँ कहें कि क्या लड़का?क्या लड़की? सभी ऐसी ज़िन्दगी जीने में एक रोमांच का आनंद ले रहे है। इसका चलन ज्यादातर उन वर्गों में देखने को मिल रहा है जो विकास के मझदार में है,यानी कि जो ना तो पूरी तरह आधुनिक है और ना पूरी तरह सांस्कृतिक होते है। जैसे कि वे लोग जिन्होंने किसी राष्ट्रीय-स्तर की परीक्षा पास करके किसी अच्छे विश्वविद्यालय में दाखिला तो ले लिया है, लेकिन अभी किसी मुकाम पर नहीं पहुँच पाए है। बस इन दोनों बातों के बीच में ये अपने दोहरे जीवन का प्रभाव तेज़ करते है और अपने खतरनाक इरादों को अंजाम देते है। दोहरे व्यक्तित्व वाले लोगों की यूँ तो कोई उम्र-सीमा नहीं होती,लेकिन हाँ ये अपना कमाल घर से बाहर की दुनिया में कदम रखते ही दिखाना शुरू करते है।
                 हास्यप्रद बात तो ये है कि ऐसे लोग इस तरह अपने दोहरे किरदार के लगातार हिट होने के बाद इनमें ये वहम भी बड़ी गहराई से जगह बना लेता है कि इन्हें हमेशा ये आत्मविश्वास होता है कि इन्हें कोई बेनकाब नहीं कर सकता और ना ही इनका नाटक कभी खत्म हो सकता है। अब इन तमाशबीनों को कौन बताए कि हर चीज़ का एक दिन अंत होता है और उनके नाटक का भी होगा। कौन बताए इन्हें कि आपका दर्शक आपके इस घिनौने चहेरे को देखने के बाद भी उन्हें इसलिए नहीं देख रहा कि उन्हें ये नाटक बेहद रोमांचित कर रहा है। वास्तव में,वो तो सिर्फ इस ताक में है कि दोहरे चहरे वाले इनलोगों के किस भाग को पहले बेनकाब किया जाए? और बाक़ी बचीकूची कसर तो ब़ाकी दर्शक पूरी कर देंगे। अंत में,दोहरे चरित्र वाले और खुद को मजा हुआ ख़िलाड़ी समझने वाले लोगों को यहीं कहना है कि....."तमाशा खत्म मियां,अब तो मुखौटा उतार दो।"

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