शनिवार, 6 सितंबर 2014

गुमनाम 'रीवा' के सफ़ेद शेर

आज़ादी के करीब साढ़े छह दशकों में, सूचना और तकनीक के क्षेत्र में भारत ने अपना परचम दुनिया में लहरा दिया है। औद्योगिकीकरण और भौगोलिकरण की दौड़ में हम दुनिया के साथ कदम-से-कदम मिला कर चल रहे है। इसी की देन है, जो आज दुनिया के हर एक कोने-कोने से हम इस कदर जुड़ चुके है कि सात समन्दर दूर की हर एक हलचल की खबर हमें पलक झपकते मिलती है। सूचना और तकनीक की इस तरक्की ने मानो'दूरी'शब्द को ही गायब कर दिया है। लेकिन दुर्भाग्यवश! आधुनिकता की अंधी दौड़ में लगातार हमारे गाँव और तमाम ऐतिहासिक जगहें रौंदी जा रही है। ये वे जगहें है जिनसे हमारी पहचान की जाती है। बरसों से जिन गांवों में हमारा वास्तविक भारत निवास करता आ रहा है और जिसने सदियों पुरानी हमारी संस्कृति की सम्पदा को समेटा है वे सभी इस दौड़ का शिकार हो रहे है। आज हमारे मीडिया में न तो गाँव दिखते है,न ऐतिहासिक शहर,न मजदूर और न किसान। दिखाई पड़ते है तो सिर्फ चकाचौंध में गुम देश,जहाँ कभी किसी के बयान पर घंटों चौपाल सजी होती है तो कभी कोई फ़िल्मी हस्ती के जन्मदिन में समर्पित होता है। मीडिया के जरिए हम दूसरे देशों के इतिहास क्या,उनके वर्तमान से लेकर भविष्य तक का पता लगा रहे है। लेकिन अपने देश में झाकने के लिए वक्त की कमी और टीआरपी का प्रश्न खड़ा हो जाता है। भारत में आज तमाम ऐसी जगहें है जिनका भारतीय इतिहास में एक विशेष स्थान रहा है,लेकिन आज ये जगहें आधुनिकता की इस चमक में अपना अस्तित्व खोते जा रहे है। ऐसे ही जगहों में से एक है-मध्य प्रदेश का 'रीवा' जिला।
           कुल 2,365,106 की आबादी वाला ये शहर भारत के प्रमुख ऐतिहासिक नगरों में से एक है। महान सितार वादक 'अल्लाउद्दीन खान' हो या उनके शिष्य 'पंडित रविशंकर' या फिर अकबर के नवरत्न 'तानसेन' या 'बीरबल' हो, इन सभी का रीवा से घनिष्ट सम्बन्ध रहा। रीवा में बघेल राजपूतों का शासन था,जो गुजरात के चालुक्य वंशीय शाखा के थे। 1550 ई. के मध्य में रीवा के राजा रामचन्द्र सिंह बघेला ने महान गायकों की समिति बनाई,जिसमें उन्होंने तानसेन को भी शामिल किया। रामचन्द्र सिंह ने अकबर के नवरत्नों में शामिल होने के लिए 'तानसेन' व 'बीरबल' को मध्य प्रदेश की तरफ से भेजा। बीरबल का जन्म रीवा के 'सीधी' नाम की जगह में हुआ। इतना ही नहीं, सूर वंश के संस्थापक शेरशाह सूरी को रीवा के राजा वीर सिंह ने कालिंजर के युद्ध में हरा कर उसकी हत्या कर दी थी। रीवा भारत का पहला ऐसा राज्य था,जिसने राजा गुलाब सिंह के समय 'हिंदी' को अपनी राष्ट्रिय भाषा घोषित किया। ये शहर ब्रिटिश बघेलखण्ड एजेंसी की भी राजधानी रहा। रीवा के अंतिम शासक राजा मार्तण्ड सिंह थे। राजा मार्तण्ड सिंह के नाम पर रीवा में विश्व-प्रसिद्ध एक विशाल संग्रहालय बनाया गया है। भारत में 'सबसे पहला सफ़ेद शेर' रीवा में पाया गया,जिसका नाम 'मोहन' रखा गया था। फ़रवरी,2007 में ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस की तरफ से, रीवा के व्यापक इतिहास पर 'बघेलखण्ड आर द टाइगर लेयेर्स' नाम की किताब का सम्पादन किया गया। ये किताब डा.डी.ई.वी. बेक्स ने बारह वर्षों के घन अध्ययन के बाद ये किताब लिखा। रीवा 'सुपाड़ी से बने खिलौनों' के लिए भी प्रसिद्ध है। जहाँ सुपाड़ी से बेहतरीन खिलौने बनाए जाते है। लेकिन अब ये कला धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है।
रीवा आज आधुनिकीकरण की दौड़ में तेज़ी से भागते शहरों में से एक है।लेकिन रीवा के इतिहास को जानने के बाद इसकी वर्तमान स्तिथि देख कर ऐसा लगता है जैसे शहर की आरसीसी की मजबूत सड़कों ने तो इस शहर में अपना जाल बिछा दिया है,जिनके तले शहर अपने ऐतिहासिक अस्तित्व अपनी अंतिम सांसे ले रहा है। विश्व-प्रसिद्ध मार्तण्ड सिंह संग्रहालय मकड़ी के जालों और दीवार की सीलन का शिकार हो रहा है तो वहीँ दूसरी तरफ रीवा की पहचान विशाल'बाणसागर बाँध' आज नाले में तब्दील हो चुका है और देश को पहला सफ़ेद शेर देने वाले इस शहर के पास एक भी शेर नहीं बचा। इसी तरह आज हमारे देश के कई और शहर,जिले व गाँव उम्मीद की टकटकी लगाए हुए है कि कब मीडिया के कैमरे और देश के बुद्धिजीवियों की कलम भारत के इन गुम होते गलियारों की ओर अपना रुख करेगी?

1 टिप्पणी:

  1. एक जरूरी और सार्थक पहल। अक्सर क्योटो की चकाचौंध में काशी और रीवा जैसे शहर भुलाये जा रहे हैं। एक सभ्यता को मिटाने और बाज़ार को स्थापित करने की यह साजिश नाकाम करनी ही होगी कोमरेड स्वाती सिंह। लाल सलाम

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