बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

'काबिल बने कामयाबी खुद आपके पीछे आएगी।'


आजकल हर अख़बार और न्यूज़-चैनलों में युवाओं के विरोध-प्रदर्शन सुर्ख़ियों में है। सिविल परीक्षाओं में सी-सैट लागू होने से गुस्साए छात्र अलग-अलग युवा-छात्र संगठन के बैनर तले प्रदर्शन करते सड़कों तक उतर आए। सी-सैट में भाषा को लेकर हुए बदलाव से हिन्दी-भाषी छात्र सबसे ज्यादा गुस्साए है। इन छात्रों का मानना है कि इस नये पैटर्न में हिन्दी को स्थान नहीं दिया गया,जो सरकार की हिन्दी-भाषी क्षेत्र के खिलाफ़ जानबूझकर बनाई योजना है। जिसके खिलाफ़ वे प्रदर्शन कर रहे है।             
         पुरे भारत में मूलत: दो प्रदेशों( यूपी और बिहार ) में ये विरोध-प्रदर्शन सबसे ज्यादा देखने मिल रहा है। विरोध करते छात्रों की इतनी अधिक संख्या देखकर ऐसा लगता है कि शिक्षित युवाओं का प्रदर्शन नहीं, पगलाई भीड़ का प्रदर्शन है जिनकी न तो कोई सोच है न कोई दिशा। दुनिया के शक्तिशाली देशों में से एक देश के युवाओं का ऐसा प्रदर्शन करना, कहीं-न-कहीं वहां युवाओं के लिए उपलब्ध अवसर पर सवाल खड़े कर देते है। युवाओं के इस तरह के प्रदर्शन ऐसा लगता है कि मानो सिविल सेवाओं के अलावा इनके पास कोई विकल्प ही नहीं है।            
         इसके साथ ही,भाषा को संचार का माध्यम होता है,जो किसी के ज्ञान का मानक नहीं होता है।लेकिन भाषा को मुद्दा बना कर लगातार राजनितिक पार्टियों के युवा-संगठन अपनी रोटियां सेंक रहे है और इन सबमें युवाओं का बिना सोचे-समझे सड़क पर उतरना बिल्कुल भी तर्कसंगत नहीं लगता। ये प्रश्न हमारे देश के भविष्य को भी प्रश्न-चिन्हित कर देती है। ये पूरी घटनाक्रम को देखकर इन युवाओं के लिए आमिर खान की एक फिल्म का डायलाग याद आता है कि-" काबिल बनो,कामयाबी झकमार कर पीछे आएगी।"

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