सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

असली भारत में संघर्षपूर्ण युवा-स्थिति   

युवा किसी भी देश की नींव होते है,जिनपर देश के विकास का भविष्य टिका होता है। और जब बात हो भारत की तो कहते है कि असली भारत यहां के गावँ में बसता है। आज इसी असली भारत के युवा तेज़ी से विकास मार्ग की ओर अग्रसरित हो रहे है,जिसका सूचक है गांवों से शहरों की तरफ रोजगार व शिक्षा के लिए ग्रामीण-युवाओं का बढ़ता पलायन ग्राफ़।        

        

            भारत में लगातार शिक्षा स्तर में वृद्धि हो रही है। क्या गांव और क्या शहर सभी शिक्षा क्षेत्र में कदम-से-कदम मिला कर चलने की होड़ में शामिल है। लेकिन इस होड़ में शामिल होना जितना आसान है उतना ही कठिन है इस होड़ में बने रहना।हम बात कर रहें है उन युवाओं की जो ग्रामीण परिवेश से शहरी दुनिया में अच्छी शिक्षा पाने आते है। जिससे उन्हें अच्छा रोज़गार मिल सके और वे अपने परिवार के साथ-साथ समाज और देश के विकास में भी अपना योगदान दे सकें।                 

लेकिन क्या वास्तव में, गांव से शहरों की तरफ जाना देश के युवाओं के लिए लाभकारी है? कह पाना मुश्किल है।गांव से शहर के ओर जब ये युवा अच्छी शिक्षा और रोज़गार का सपना लिए जब अपने घर से निकलते है तो इनपर इनके परिवार की उम्मीदें और समाज की नज़र टिकी होती है। कभी गावँ में अपने खेत बेच कर तो कभी बैंक में सालों से जमा की हुई पूंजी लगा कर एक ग्रामीण परिवार बड़ी उम्मीदों के साथ अपने बच्चे को शहर के बड़े कॉलेज में दाखिला दिलाता है। जो उनके बच्चे को उस होड़ में तो शामिल करवा देता है,लेकिन होड़ में बने रहना युवा के सामने सबसे बड़ी चुनौती होती है।                    

शहरी वातावरण के अनुरूप ढलना युवा के लिए एक बड़ी चुनौती होती है, जहां उसे शिक्षा के साथ-साथ अपनी दैनिक दिनचर्या के खर्चों के लिए आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनना ज़रूरी हो जाता है। जिसमें वर्तमान समय में युवा सबसे ज़्यादा  गुमराह किये जा रहे है। महानगरों में तमाम ऐसे रैकेट इन युवाओं की तलाश में रहते है जिन्हें पढ़ाई के साथ-साथ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता होती है। ये रैकेट इन युवाओं को अपने जाल में फांस कर इनका शारीरिक व मानसिक शोषण तो करते ही है, इसके साथ ही इन्हें पैसों के ढ़ेर और महानगरों की चकाचौंध दिखा कर दिशा-भ्रमित भी करते है। जिनकी पहचान कर बच निकलना युवा के लिए एक बड़ी चुनौती होती है।          
         
आर्थिक जीवन के बाद अब बारी आती है,सामाजिक जीवन की। जो युवा के व्यवहार,मूल्य और लक्ष्य को एक सही आकार प्रदान करता है। वे युवा जो अपने गावं-घर से दूर शिक्षा पाने जाते है और सालों अपनों से दूर रह कर जीवन में एक मुकाम पाने की जदोजहद से जूझते है,उनके परिवार की उम्मीदें जहां एक ओर अपने मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेणना देती है जो वहीं समाज की नज़रें उन्हें हर पल एक 'डर का एहसास कराती है। हरपल समाज को लेकर युवा-मन में डर से बस एक बात चलती है कि,' लोग क्या कहेंगे? अगर मुझे अच्छी पढ़ाई करने के बाद एक अच्छी नौकरी नहीं मिली? अच्छा रोजगार पाने में अगर असफ़ल हुए तो समाज को क्या चेहरा दिखाएंगे? ' जैसे तमाम अन्य सवाल। समाज के इन सवालों के दबाव का असर कभी-कभी  युवा मन में इस कदर घर कर जाता है, वे अपने जीवन को खत्म करने तक की गलती कर बैठते है। जो हमारे समाज को शर्मसार करने वाला एक कड़वा सच है।              
          
  समाज के कुछ निर्धारित मानकों में जहां एक ओर लड़कों के सन्दर्भ में आर्थिक रूप से सशक्त होने को सफलता मानते है तो वहीं लड़कियों के सन्दर्भ में समाज की बनाई हुई स्त्री ( इज़्ज़त के नाम पर खुद को घर की दहलीज़ में कैद करना और पढ़े-लिखे होने के बावज़ूद अपनी जिंदगी के फ़ैसले के लिए दूसरों पर आश्रित रहना) या यूँ कहें समाज की संस्कारी बहु, बेटी और लड़की के मानक पर खुद को प्रमाणित करना आवश्यक होता है,जिसके दबाव में अधिकांश युवा अपना जीवन व्यतीत कर रहे है।ये दबाव धीरे-धीरे युवा के मानसिक-संघर्ष को बढ़ावा तो देती ही है,इसके साथ-साथ उन्हें अपने परिवार और सामाजिक-समूहों से दूर करने लगती है। जिस कारण आज युवाओं में अकेलेपन और अवसाद की समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।            
              
 युवा आज के समय में, इन तमाम प्रतिकूल परिस्तिथियों को पार करते हुए सफल मुकाम तक पहुँच रहे है। लेकिन इन सफल युवाओं के प्रतिशत का दायरा दिन-प्रतिदिन सिमटता जा रहा है। जो हमारे समाज के साथ-साथ देश के विकास के लिए भी ख़तरे की घण्टी है।     
             
आज भारत में नई सरकार के साथ-साथ, देश के विकास पर बातचीत तेज़ हो गई। जिसमे युवा-विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है जिससे युवा-शक्ति की पूरी ऊर्जा देश के विकास में सही दिशा में लग सके। लेकिन क्या विकास-मॉडल की अवधारणा और इसकी नीति हमारे समाज में युवा-स्तिथि का विकास कर पाएंगी?  क्या नयी सरकार के युवा-विकास के लिए किये जाने वाले प्रयास उनकी स्तिथि और समाज के उनके प्रति-दृष्टिकोण में एक सकारात्मक परिवर्तन कर पायेगी? क्या ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले युवाओं का विकास के लिए शहरों की तरफ पलायन करना आवश्यक होगा? इन जैसे तमाम सवालों पर आज देश के हर युवा की नज़र टिकी हुई है। 
             अब देखना है कि अच्छे-दिन लाने के वादे पर बनी सरकार युवाओं की उम्मीदों पर कितनी खरी उतरती है।

स्वाती सिंह

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