सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

भारत-पाक समस्या: उपजी? या उपजाई.?

राजमोहन गाँधी( प्रसिद्ध इतिहासकार,दार्शनिक और पत्रकार) ने  भारत के सन्दर्भ में कहा था कि, "भारतीय इतिहास की कई घटनाएं इस बात की गवाह हैं कि दुश्मन का मुकाबला करने के लिए तो हमारी एकता कई बार बनी लेकिन दुश्मन पर विजय पाने के बाद हम क्या करेंगे,भावी मुकम्मिल योजना क्या होगी,यह विचार देश में मुकम्मिल ढंग से आगे नहीं बढ़ पाया। आज़ादी तो मिल गयी लेकिन आज़ादी के बाद की दुनिया हम कैसे बनाएँगे उसके बारे में बहुत स्पष्टता नहीं थी"।भारत-पाकिस्तान सीमा पर लगातार बढ़ते तनाव की घटनाओं को देख कर राजमोहन की ये बातें सच लगने लगती है।अंग्रेजी हुकूमत से यूँ तो हमारा देश 1947 में आज़ाद हुआ लेकिन क्या ये एक वास्तविक आज़ादी थी? ये कह पाना मुश्किल था, क्योंकि उन्होंने भारत की अखण्डता और एकता में 'फूट डालों,राज करो' नीति के तहत एक ऐसा विष घोला कि भारत में लोकतन्त्र की स्थापना के साथ पाकिस्तान का एक अलग राष्ट्र के रूप में उदय हुआ। भारत से पाकिस्तान का अलगाव खून-खराबें के साथ हुआ,जिसके फलस्वरूप नव-निर्मित दोनों राष्ट्रों के नागरिकों के बीच विद्वेष का स्थायी भाव उपजा जो निरंतर कम-ज़्यादा होते हुए आज भी कमोबेश उसी रूप में परिलक्षित होता है। रहीमदास जी का एक दोहा है-
             ' रहिमन धागा प्रेम का,मत तोरेहु चटकाय।
                टूटे से फिरि ना जुरै, जुरै गांठ परि जाय।।'
जो भारत और पकिस्तान के रिश्तों के लिए एकदम सटीक मालूम होता है। तत्कालीन नेताओं की सत्ता को लेकर लोलुप्ता इस विभाजन का मूल कारण बनी। जिसका भुगतान तब से लेकर आज तक दोनों देशों के नागरिक कर रहे है। कभी सीमा पर अपने-अपने देशों के सिपाही बन शहीद होकर, तो कभी सुरक्षा के नाम पर अपने घरों को छोड़ कर पलायन करने में। मानव-निर्मित इन तमाम परिस्थितियों ने भले ही इन दो देशों के दिलों को जुदा कर दिया हो,लेकिन कुदरत आज भी इन्हें एक मानती है। हिमालय पर्वत इन तमाम विद्वेष को नज़रअंदाज कर आज भी इन दोनों राष्ट्रों का शिरमौर्य है। हिमालय की तलहटी से निकलने वाली नदियां बिना किसी भेदभाव के दोनों राष्ट्रों की प्यास बुझाती है। भाषा हो या लोगों की रूप रेखा दोनों राष्ट्रों में ज़्यादा फ़र्क नहीं दिखाई पड़ता, यदि देखने वाले की नज़र का नजरिया एकता हो।
भारत पकिस्तान के बीच सम्बन्ध दिन-प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे है, जिनका समाधान करना दोनों राष्ट्रों के विकास और सुरक्षा के लिए एक अनिवार्य पहलू है। लेकिन अब प्रश्न आता है कि आखिर इनके सम्बन्ध कैसे सुधारे जा सकते है? ऐसा नहीं कि पाकिस्तान से सम्बन्ध सुधारने की कोशिश नहीं की गई, लेकिन अगर कोशिश की गई तो आखिर कमी कहाँ रह गई? इस बात पर गौर करने के बाद ही कोई योजना बनाई जा सकती है।
            सिक्के के दो पहलुओं को तरह भारत और पाकिस्तान के बीच जितनी समानताएं है उतनी ही विषमताएं भी विद्यमान है। भारत में जहां सरकार लोगों के द्वारा चुनी जाती है तो वहीं पकिस्तान की निर्धारित राजनीति-प्रणाली के विरुद्ध सैन्य शक्ति के आधार पर सरकार चुनी जाती है,जिनका मूलाधार होता है 'आतंक'( जैसे -परवेज मुशर्रफ द्वारा आतंक के बल पर सत्ता में आना )। अब बात की जाय लोकतन्त्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया की तो जहां भारत में मीडिया को एक अच्छे लोकतन्त्र की विशेषता के अभिव्यक्ति की स्व्तंत्रता के तहत पूर्ण-स्व्तंत्रता प्राप्त है। वहीं पाकिस्तान में मीडिया का नाम तो है लेकिन उनकी स्वतन्त्रता की वैद्यता सत्ताधारी के फ़ायदे पर शुरू होती है और वहीं पर खत्म। भारत और पाकिस्तान के बीच की ये दो विषमताएं मूलतः दोनों राष्ट्रों के बीच दूरियों का कारण है।
जैसा की हम सभी जानते है किसी भी राष्ट्र की राजनीतिक-प्रणाली उस देश की स्तिथि के लिए जिम्मेदार होती है। यदि सत्ता की नींव आतंक पर रखी गई है तो हमेशा आतंक को बढ़ावा देगी, फिर क्या मुम्बई की 26/11 की घटना और क्या पेशावर के सैनिक स्कूल में बच्चों  को मौत के घाट उतारना। पाकिस्तान में चुनाव के वक़्त कश्मीर के मुद्दे का इस्तेमाल एक गड़े हुए मुर्दे की तरह सालों से चला आ रहा है,जिनके दम पर वहां अपनी सत्ता लायी जा सके। नतीज़न भारत में मीडिया जहां आँख बन्द करके आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान का प्रदर्शन इस तरह करता है कि मानों हर पाकिस्तानी आतंकवादी है, तो वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तानी मीडिया आतंकवाद की भेंट चढ़े अपने बच्चों की मौत पर सब जानते हुए भी चुप्पी साधने को मजबूर कर दिया जाता है।
पाकिस्तान की बुनियाद, मजहबी घृणा को बढ़ावा देकर,निजी महत्वक्षाओं की पूर्ति का सेतु बनाकर और विनाशक एवं विभाजनकारी प्रवित्तियों को जन्म देते हुए रखी गई थी। नतीज़न 63 वर्षों में एक अलग देश के रूप में स्थान पाने के अलावा यदि कुछ पाया है तो वो है देश की राजनीतिक अस्थिरता के सायों में बनती बिगड़ती ऐसी सरकारें जो सीमाओं के अंदर सम्पन्नता के मजबूत आधारों को सुनिश्चित करने में असफल रहीं। और अपनी इस विफलता पर बखूबी पर्दा डालते हुए हर बार कश्मीर के मुद्दे को जीवित रख कर असंख्य लोगों की मजहबी भावनाओं को बार-बार उभरता आया है।
         भारत-पाकिस्तान की स्तिथि के विवरण के उपरांत, अब सवाल उठता है कि आखिर कैसे इन दो देशों के बीच घुली इस कड़वाहट को कम किया है? महात्मा बुद्ध ने अपने बताए हुए चार आर्य सत्यों में बताया था कि यदि दुनिया में दुःख है तो दुःख का कारण भी है और यदि कारण है तो निवारण भी है। इसी तर्ज़ पर भारत-पाकिस्तान के रिश्ते बिगड़ने के तमाम कारण रहें हो,लेकिन उन्हें सुधारने के भी कई उपाय है। बस इंतज़ार है तो इन उपायों को खोज कर इनपर काम करने का।

स्वाती सिंह

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