गुरुवार, 12 मार्च 2015

परीक्षा के लिए आवश्यक है -संयम, समझ और प्रभावी-प्रस्तुतिकरण   

     
      आमतौर पर परीक्षा का नाम सुनते है, हमलोगों के जहन में ढेर सारी किताबें और एक अजीब से मानसिक तनाव का एहसास होने लगता है। परीक्षा को लेकर हमलोगों के मन में बनने वाली इस संरचना को इसके तात्विक स्तम्भों से समझना ज़रूरी है। वास्तव में, यदि हम परीक्षा को चिन्ता, दबाव और गम्भीरता मात्र से जोड़ कर देखते है तो इस दृष्टिकोण से अब हमें इसे बदलने की सख्त आवश्यता है।     
                क्योंकि वास्तव में परीक्षा एक क्लास से दूसरी में जाने की हो या फिर नौकरी की होड़ में अव्वल आ कर नौकरी पा लेने की हो, ये सभी परीक्षाएं सिर्फ हमारे ज्ञान-भण्डार को आंकने का पैमाना नहीं होती, बल्कि इसके विपरीत ये किसी विषय पर हमारी समझ और उस समझ के प्रस्तुतिकरण को आंकती है। किसी भी परीक्षा के लिए गम्भीरता अनिवार्य है, लेकिन यदि ये गम्भीरता सही दिशा की ओर नहीं है तो ये निर्रथक होती है।     
              परीक्षाएं चाहे पढ़ाई से जुडी हो या फिर जीवन से जुडी ये हमेशा हमारे संयम और समझ की मांग करती है। किसी भी कठिन परिस्तिथि में हम किस तरह अपने जवाब को सवाल के अनुसार ढालते है। गम्भीरता और पूरी सतर्कता के साथ अपने ज्ञान को जवाब के अनुरूप ढालना ज़रूरी है।ये एक ऐसी कला है, जिसे सीखने के बाद हम किसी भी परीक्षा में असफल नहीं हो सकते। फिर चाहे वो जीवन से जुडी हो या फिर शिक्षा से।      
                सवालों के अनुसार अपने जवाब को बनाने की कला ना केवल हमारे ज्ञान की मांग करती है बल्कि ये मांग करती है, "संयम"- शांत मन से सवाल को समझने की। "समझ"-प्रश्न के अनुसार उस विषय पर अपने ज्ञान को सारगर्भित करने की, और सबसे ज़रूरी "प्रभावी-प्रस्तुतिकरण"- प्रश्न समझने के बाद ज्ञान को सारगर्भित करके उसे प्रभावपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करना। ये कला ना केवल हमें परीक्षाओं में सफलता दिलाती है बल्कि ये हमारे व्यक्तित्व में रचनात्मकता का भी सृजन करती है।   
                यदि जीवन के परिपेक्ष्य में इस कला की उपयोगिता की बात की जाय तो ये हमें परिस्तिथि के अनुरूप ढलने और किसी भी समस्या को पूर्ण सयंम के साथ कठिनाइयों से जूझने की कला भी सीखती है। कहते है ना कि 'करत-करत अभ्यास जड़मति होत सुजान', इसी तर्ज़ पर यदि इस कला को भी अभ्यास हम लगातार अपने शैक्षणिक जीवन के साथ-ही-साथ अपने व्यवहारिक जीवन में करते रहे तो ये हमें एक अच्छे और आत्मविश्वासी इंसान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 
                    इस कला की नींव या मूलभूत आधार की बात की जाये तो वो है- शैक्षणिक जीवन में अच्छी का चयन और व्यवहारिक जीवन में अच्छे लोगों की संगत। ये दो ऐसे मूलाधार है जिसपर इस कला की एक सुदृण नींव रखी जाती है।

स्वाती सिंह

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