शुक्रवार, 24 अप्रैल 2015

राष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास संगठन ( DRDO )

राष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास संगठन देश में राष्ट्र के प्रति निस्वार्थ सेवा भावना से जुड़ा एक अहम संस्थान है। ये संस्थान भारतीय सेना, नौसेना तथा वायु सेना के उपयोग  में आने वाले रणनीतिक,जटिल और संवेदनशील शस्त्र प्रणालियों के डिजाइन एवं विकास के जरिए डिफेन्स टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में देश को आत्म-निर्भर बनाने की दिशा में अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहा है। इस संस्थान की स्थापना सैन्य प्रौद्योगिक के विभिन्न क्षेत्रों के विश्व स्तरीय हथियार-प्रणाली का विकास करने एवं नवीनतम टेक्नोलॉजी के साथ भारत को स्वावलंबी व शक्ति संपन्न करने के लिए किया गया है।

आज भारत बहुस्तरीय सामरिक डिटरेन्स प्रणालियों से संपन्न विश्व के चार राष्ट्रों में से एक है। भारत उन पांच देशों में से एक है जो दुश्मन द्वारा दागी गई बैलस्टिक मिसाइल को नष्ट कर सकने की क्षमता रखता है। भारत उन सात देशों में शामिल है जिन्होंने स्वदेश में मुख्य युद्धक टैंक एवं उन्नत रडार प्रणालियां विकसित की है। ये एक व्यापक रेंज है लेकिन इसके पीछे एक लम्बी और कड़ी मेहनत शामिल है, जिसमें व्यापक प्रयोग, परीक्षण व कठिन परिश्रम द्वारा अर्जित सफलताएं शामिल है।

कष्टप्रद शुरुआत

आज़ादी के बाद से ही खतरों की आशंकाओं और आरएंडडी इंफ्रास्ट्रक्चर के नितांत अभाव में भारतीय रक्षा सेवाओं को वस्तुतः शून्य से शरुआत करनी पड़ी। इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए एक दुर्गम यात्रा से गुजरना पड़ा, क्योंकि उन्नत रक्षा प्रौघोगिकियों से संपन्न विकसित देशों ने "टेक्नोलॉजी डिनायल" एक अन्य प्रकार की चुनौतियों के बाद भी भारत को एक मजबूत व आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में उदित करने की हरसंभव कोशिश की।

भारत को रक्षा के क्षेत्र में आयात पर काफी अधिक निर्भर रहना पड़ा, लेकिन विदेशी शक्तियां भारत को केवल ऐसे हथियार ही देने की इच्छुक थी, जो उनके लिए पुराने पड़ चुके थे।इन्हीं परिस्थितियों के बीच डीआरडीओ का वजूद सामने आया। इसका गठन 1958 में भारतीय सेना के पहले से ही काम कर रहे टेक्निकल डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट (टीडीई), डिफेन्स साइंस आर्गेनाइजेशन (डी एस ओ) तथा डकोरेटेड ऑफ़ टेक्निकल डेवलपमेंट एन्ड प्रोडक्शन (डी टी डी पी) निदेशालय के समन्वय के बाद हुआ।

डीआरडीयो ने उन अहम टेक्नोलॉजी को समझने पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें दूसरे देश हमारे साथ साझा करना नहीं चाहते थे। उस वक़्त ये केवल 10 Establishment या प्रयोगशालाओं का एक छोटा संगठन था। हमारे सैन्य बलों को विकसित देशों की निर्यात नियंत्रण व्यवस्थाओं का सामना करने में मदद करते हुए डीआरडीयो ने प्रगतिशील तरीके से अत्याधुनिक प्रतिरक्षा प्रणालियों के विकास के जरिए उनकी मुठभेड़ कुशलता को बढ़ाया है।

1980 में एक अलग डिफेन्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन का गठन किया गया, जो अब डीआरडीयो तथा इसकी 52 प्रयोगशालाओं एवं इस्टेबिश्मेंट्स का संचालन करता है। 7700 वैज्ञानिकों एवं 20 हज़ार से अधिक टेक्निकल तथा सपोर्टिंग कर्मचारियों के साथ डीआरडीयो आज विभिन्न विषयों को कवर करने वाले रक्षा प्रौद्योगिकियों के विकास में गहरे रूप से जुड़ा हुआ है।

उपलब्धियाँ

डीआरडीयो के मिशन में रक्षा सेवाओं के लिए अत्याधुनिक सेंसर्स,हथियार प्रणाली,प्लेटफार्म तथा सहायक उपकरणों का उत्पादन करना, मुठभेड़ की प्रभावोत्पादकता को अधिनियम सीमा तक बढ़ाने के लिए सेना को तेचनोलॉजिकल साल्यूशंस मुहैया कराना, सैनिकों के कल्याण को बढ़ावा देना, प्रतिबद्ध क्वालिटी मैनपावर का विकास करना एवं एक मजबूत स्वदेशी टेक्नोलॉजी पर आधारित हथियारों एवं सैन्य उपकरणों का उत्पादन मूल्य, जिनके आर्डर रक्षा सेनाएं दे चुकी है।

अग्नि-5 की पहली उड़ान प्रोजेक्ट की मंजूरी मिलने से तीन साल में ही संभव हो गई क्योंकि  इसके पीछे तीन दशकों का समर्पण, इनोवेशन एवं डीआरडीयो की टीम की कड़ी मेहनत शामिल है।

यही नहीं, डीआरडीयो ने विभिन्न कंपोनेंट सब-सिस्टम तथा सिस्टम तथा कंप्लीट एयरबार्न प्लेटफार्म के लिए टेस्टिंग एवं सार्टिफिकेशन के क्षेत्र में भी विशेषज्ञता हासिल कर ली है।

डीआरडीयो ने सफलतापूर्वक मॉडलिंग एवं सिमुलेशन के जरिये इन्फैंट्री कॉम्बेट व्हीकल्स एओलिकेशन जैसे वर्चुअल प्रोटोटाइप,एडवांस्ड रनिंग गियर सिस्टम, आकिजलरी पावर यूनिट, वाटर लेट प्रोबेल्शन तथा शाक रेसिस्टैंस सीट्स के लिए टेक्नोलॉजी का डिजाइन एवं विकास किया गया।

स्वाती सिंह

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