बुधवार, 1 जून 2016

ताकि नर्मदा बचे

नर्मदा बचाओ सत्याग्रह फिर से उफान पर है. राजघाट पर बैठे आंदोलनकारी बाँध से विस्थापित हुए लोगों और मछुआरों के हकों की मांग तेज़ कर रहे हैं.
स्वाती सिंह



पच्चीस अगस्त (2016) को राजघाट पर जीवन अधिकार सत्याग्रह के आयोजित भूमि-आवास-आजीविका महासम्मेलन में लोगों का हुजूम उमड़ता रहा. नर्मदा घाटी के सरदार सरोवर बाँध से बड़वानी और धार जिले के प्रभावित और विस्थापित लोगों ने विस्थापन के खिलाफ़ एकजुट होकर अपनी आवाज़ बुलंद की. महिलाएं भी इस सत्याग्रह में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहीं हैं. गौरतलब है कि बीते 12 अगस्त से नर्मदा नदी किनारे राजघाट पर नर्मदा बचाओ आन्दोलन में अनिश्चितकालीन सत्याग्रह चलाया जा रहा है. जिसमें आंदोलनकारियों ने यह ऐलान किया था कि अगर इस बार बिना पुर्नवास के डूब आती है तो आन्दोलन का समर्पित दल नर्मदा किनारे से नहीं हटेगा. इस जनांदोलन में मेधा पाटकर, डॉ सुनीलम, रामकृष्ण राजू और संदीप पाण्डेय जैसे सामाजिक कार्यों से जुड़ी नामचीन हस्तियाँ भी शामिल है.

नर्मदा बचाओ आन्दोलन की नेत्री मेधा पाटकर ने ऐलान किया कि सरदार सरोवर परियोजना से प्रभावित लोग उनके साथ हो रहे अन्याय को नहीं सहेंगे. चाहे उसके लिए शहादत भी देना पड जाए. उन्होंने बताया कि आज भी 244 गाँव और एक नगर सरदार सरोवर से प्रभावित है. जिसमें 2.5 लाख प्रभावित लोगों का पुनर्वास बाकी है. इसके साथ ही, सत्याग्रह में आवली, सेगवा, निसरपुर, अचोदा, अवल्दा और कट्नेरा गाँवोन के विस्थापित लोग धरने में मौजूद रहे. इन लोगों ने अपने-अपने गांवों के हालात के बारे में भी बताया. इस तरह विस्थापितों की मांग एक बार फिर गूंज उठी.
विस्थापन की मार झेल रहे लोगों का कहना था कि आज भी गाँव में लोग खेती, मजदूरी और मछली-बाज़ार पर जिन्दा हैं, हमारे स्कूल,मंदिर,मस्जिद और पेड़ सहित गाँव आबाद है, तब सरकार हमें शून्य कैसे घोषित कर सकती है? ऐसे में लोगों ने अपने अधिकारों के लिए पुरजोर आवाज़ उठायी. राजघाट पर धरने पर बैठे धनोरा,समदा,साला गांवों के लोग बड़वानी के कलेक्टर कार्यालय पहुंचे. लोगों ने जिलाधीश को चेतावनी दी कि बिना पुनर्वास उन्हें डूबना गैर-क़ानूनी होगा. नतीजतन जिलाधीश अजय सिंह गंगवाल को बाहर आकर विस्थापितों की शिकायत सुननी पड़ी, गंगवाल के ज्ञापन लेने के बाद यह भरोसा भी देना पड़ा कि वे जल्द ही धनोरा के मूल गाँव का दौरा करेंगे. गाँव की महिलाओं ने कहा कि पुनर्वास के संबंध में ग्राम सभाओं के प्रस्ताव वाले मलिकाना हक को शासन अनदेखा नहीं कर सकता.

किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष और मुलताई के पूर्व विधायक और जनांदोलन के राष्ट्रीय समवाय के राष्ट्रीय संयोजक डॉ सुनीलम को बताया कि सामान्य आने वाले दिनों में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राज्य मानव आयोग और संबंधित मंत्रालयों को लगातार पत्र लिखेंगे. इसके साथ ही साथ प्रभावित गांवों में पोस्ट-कार्ड अभियान भी चलाया जाएगा. हरसूद दिवस (28 सितंबर) को नर्मदा घटी के लोगों ने और अन्य संगठनों का एक संयुक्त कार्यक्रम भी किया जायेगा. जनांदोलन के अंतर्गत नवंबर में भू-अर्जन और झूठी विकास की अवधारणा के खिलाफ़ एक देशव्यापी ‘भू-अधिकार जन विकास यात्रा’ चलाई जाएगी.

नर्मदा किनारे के मछुआरों ने भी अपना मछली अधिकार सम्मेलन किया. इसमें बड़वानी तहसील के गांवों के मछुआरे मौजूद रहे. बरगी बाँध के जलाशय में 54 मछुआ सहकारिता समितियों के महासंघ के अध्यक्ष रह चुके मुन्ना बर्मन विशेष अतिथि रहे. उन्होंने कहा कि बरगी में भी हजारों की संख्या में मछुआरों के साथ किसान-मजदूरों ने भी एकजुट होकर संघर्ष किया, इसके बाद विस्थापितों का हक स्वीकार करके मछली पर उन्हें अधिकार देना शासन को मंजूर करना पड़ा. तवा में भी विस्थापित मछुआरों ने अपना हक लड़कर वापस ले लिया. उसी तरह सरदार सरोवर में भी लड़ाई के अलावा और कोई रास्ता नहीं है. बर्मन ने यह भी सवाल किया कि मछुआरों के नाम से भी मध्य प्रदेश मत्स्य महासंघ, भोपाल में पिछले 15 सालों से अभी तक चुनाव नहीं हुए.


मेधा पाटकर ने ऐलान किया कि नर्मदा के दोनों किनारों हजारों मछुआरों को बिना मछली पर हक और सही पुनर्वास के विस्थापन थोपना गैर-क़ानूनी होगा. पाटकर ने यह भी कहा कि जिन मछुआरों का सरदार सरोवर में 40,000 हेक्टेयर पर अधिकार है, उन्हें मात्र 40 हज़ार रूपये का नगद अनुदान देकर सरकार नहीं भगा सकती. मीरा और कैलाश अवास्या ने भी मछुआ अमितियों पंजीकरण के सवाल और मुद्दे उठाये. वहां मौजूद सभी मछुआरों और केवट समाज के लोगों ने अपना संघर्ष तेज़ करने का संकल्प भी लिया. सम्मेलन के बाद सभी मछुआरे पंजीयन विभाग और मछली विभाग गये और अधिकारियों से अपने लंबित समितियों के बारे में सवाल-जवाब किये. इसके अलावा सत्याग्रहियों ने वेद के विस्थापितों को सही पुनर्वास के साथ गिरफ्तार किये गये.  

(राष्ट्रीय पत्रिका-'शुक्रवार' के अंक-17 में प्रकाशित लेख.)

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