उस दिन सुबह कुछ अखबार और टीवी वाले मेरे घर आये थे. मैंने सुना - मेरी चाची उनसे तेज़ आवाज में कह रही थी कि ‘मैं प्रधानमन्त्री से सवाल करती हूं कि आप कहते हैं बेटी बचाओ, मगर किसलिए, उन्हें घर में बिठाने के लिए? या फिर लोगों से छेड़ने, बलात्कार और हत्या किए जाने के लिए’.
बस इतना ही सुना मैंने. मेरे पेट और होंठों में बहुत दर्द हो रहा था. उस दिन
राहुल भईया ने मेरे होंठ को ब्लेड से काट दिया था. दर्द की वजह से मैं अब मुनिया
के साथ खेल नहीं पाती. घर में सब मुझे किसी के साथ खेलने और मिलने से मना करते है.
पापा ने स्कूल से मेरा नाम भी कटवा दिया. मैं पढ़ना चाहती थी. स्कूल में मैडम रोज
मेरी कॉपी में गुड दिया करती थी. पर अब तो मैं बस घर में रहती हूं. मेरे घर भी अब कोई
नहीं आता है. पता नहीं, सब मेरे साथ ऐसा क्यूँ कर रहे है.
उस दिन राहुल भईया ने मुझे चाउमीन खिलाया था और दस रूपये भी दिए थे. उसके बाद
वो मुझे छूने लगे. मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था. जब मैं चिल्लाई तो वो
मुझे मारने लगे. उसके बाद मेरे साथ गंदी हरकत की. मेरे होंठ और गले को ब्लेड से
काट दिया. मुझे बहुत डर लग रहा था और दर्द भी हो रहा था. जब मैं अस्पताल में थी तब
माँ बता रही थी कि भईया ने मुझे कूड़े के डिब्बे में फेंका था और जब पापा ने मुझे
देखा तो मेरे शरीर में बहुत खून लगा हुआ था. अब मुझे अपनी गुड़िया से भी खेलने का
मन नहीं करता.
ये कहानी है- आठ साल की पिंकी की. जिसे उसने अपनी मासूम जुबां से बयां किया.
क्यूंकि उसे लिखना नहीं आता. अगर स्कूल जाती तो शायद उसे इस साल अपनी अगली क्लास
में मात्रा का प्रयोग करना आ जाता और फिर वो अपना नाम भी लिख पाती. लेकिन अफ़सोस,
अब उसकी आँखों के पन्नों में, खौफ़ के अक्षर और दर्द की मात्राओं से लिखी वो घटना उसे
नींद में डर से जगा देती है.
पिंकी के पिता मनोज, एक दिहाड़ी मजदूर है. लेकिन आजकल वो मजदूरी नहीं कर पाते
क्यूंकि उनका पूरा दिन थाने के चक्कर काटने में बीत जाता है. अब तो पिंकी की दवाई
और घर का खर्च उनके एक बिसवे ज़मीन को गिरवी रखने के बाद से चल रहा है. पुलिस उस
राहुल को अभी तक हिरासत में नहीं ले पायी है, जिसने पिंकी के साथ उस दिन वो घिनौनी
हरकत की. बताते है कि राहुल किसी बड़े नेता का रिश्तेदार है. वो रोज शराब पीने
पिंकी के घर के पास आया करता था. इन सबके बावजूद, मनोज को अभी भी देश की
कानून-व्यवस्था पर विश्वास है और इसी उम्मीद में उसने अभी तक हिम्मत नहीं हारी है.
पिंकी के पिता और माँ अब बस एक ही बात कहते हैं, एक समाज के बतौर हम असफल हो
चुके हैं, ये समाज चरमरा गया है, सब खत्म हो गया है. यहां कोई भी अपनी जिम्मेदारी
लेने को तैयार नहीं है.’
आज हमारे समाज में, पिंकी जैसी न जाने कितनी मासूम बच्चियों के बचपन को कुचलकर
घिनौने खौफ़ में जीती एक जिंदा लाश में तब्दील कर दिया जाता है. दूसरों की बुरी
नियत के चलते हम महिलाओं को घूंघट करने का फरमान, उनकी सुरक्षा की दुहाई देकर जारी
कर देते है. लेकिन जब ये भेड़िये, उन नन्हें बच्चे को अपना शिकार बनाने लगे,
जिन्हें लड़का और लड़की में फ़र्क तक मालूम नहीं तो ये संकेत है इस समस्या को देखने के
नजरिये और इससे निबटने के तरीके को बदलने का.
मासूमों से बलात्कार की घटनाओं के बाद अक्सर हम अपनी आवाज़ तालिबानी न्याय पर
बुलंद करते है. पर हम ये भूल जाते है कि इससे ये समस्या कभी हल नहीं होगी. क्यूंकि
इसकी जड़ हमारे, आपके या यूँ कहें कि पूरे समाज की सोच से आती है. और इसकी पहल हमें
अपने घर से करनी होगी. अपने बच्चों को किताबी शिक्षा के साथ अच्छा इंसान बनने की
शिक्षा देकर. न की संस्कारी लड़की या बहादुर मर्द बनने की शिक्षा. वरना हमारे
भविष्य के इन नन्हें दीपों की रोशनी खौफ़ की चादर में लिपटकर सिमट कर बुझ जायेगी.
और इन बुझे दीपों का धुआं समाज को दमघोटू बना देगा.
स्वाती सिंह
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