आज महिलाओं ने अपना सशक्त मुकाम हासिल करने के लिए कितनी कुर्बानी दी है, मालूम भी है आपको? रात-रात भर जाग कर पढ़ी हैं वो। उसने खुद को काबिल बनाया है। उसके संघर्ष में घर के पुरुषों ने ही साथ नहीं दिया। वह अकेली लड़ी है आगे बढ़ने के लिए। फिल्म, फैशन वर्ल्ड और कॉरपोरेट से लेकर साहित्य व मीडिया तक, पुलिस और प्रशासनिक सेवाओं से लेकर मेडिकल और इंजीयिरिंग तक वे अपनी प्रतिभा से पहुंची हैं। आज जब वह अपने हिस्से की दुनिया जीना चाहती हैं, तो पुरुष उन्हें पितृसत्ता की आड़ में कठपुतली की तरह नचाना चाहते हैं। कमाल है....!
अब
इसे महज संयोग कहा जाए या साजिश, एक पितृसत्तात्मक समाज में जो पुरुष का
होता है वह वैध है, वरना बाकी सब अवैध है। खासकर महिलाओं के
संदर्भ में। लड़की ने अगर पितृसत्ता के अनुसार शादी की, तो वह
‘शरीफ’ और अगर नहीं की तो ‘छिनाल’ या ‘चरित्रहीन’। शारीरिक-संबंध अगर सिर्फ पति के साथ हुआ तो लड़की ‘पतिव्रता’
और अगर नहीं हुआ या कभी किसी और के साथ रहा हो, तो लड़की ‘रंडी’ या ‘वेश्या’। अगर यही पुरुष करे तो कोई बात नहीं।
संस्कार, इज्जत, कायदे या तहज़ीब के नाम
पर क्या खूब रची गई है न ये मर्दों की दुनिया....!
यहां सब का आधार बपौती है। यानी बाप-भाई या पुरुष रिश्तेदार जो कहें या
करें, वह सही। और बंधन तोड़ कर एक मुकाम हासिल कर रहीं परिवार
और समाज की महिलाएं अपने मन की करें, तो भइया वह सब गलत है।
आप करो तो सब ठीक और हम करें तो संदेहास्पद चरित्र। शायद यही वजह है कि इन मर्दों
ने अपनी भड़ास निकालने के लिए अधिकांश गालियां महिलाओं पर ही केंद्रित करके बनाई गई
है। यहां तक कि उन्होंने अपनी मां और बहन को भी इसमें नहीं बख्शा।
इसी तर्ज पर, आजकल लड़कियों के संदर्भ में कथित कुलीन
लोगों में एक गाली- ‘बिच’ और अपने देसी
समाज में ‘कुतिया’ के इस्तेमाल का चलन
तेजी से बढ़ा है। घर में तो ये आम है। मगर सोशल मीडिया हो या सड़क-चौराहा, कॉलेज-कैंपस हो या आॅफिस का कैफेटेरिया, बड़ी आसानी
के किसी लड़की को ‘कुतिया’ घोषित कर
दिया जाता है। और क्या आपको पता है कि ‘कुतिया’ घोषित किए जाने के मानक क्या हैं? अगर नहीं जानते तो
आइए हम बताते हैं -
कुतिया
हो तुम ‘अगर’-
-मर्दों की गढ़ी हुई ‘संस्कारी औरत’ की परिभाषा में तुम खरी नहीं उतरती।
-चीज़ों को देखने-सोचने का तुम्हारा एक अपना नज़रिया है या यूं कहें कि
तुम्हें किसी की बातें यूं ही मान लेना पसंद नहीं।
-तुम अपने आपको वो इंसान समझती हो, जो सोचने-समझने और
उन पर कायम रहने की हरसंभव कोशिश करता है। मगर ऐसा है नहीं।
-तुम्हारे पास बहुत सारे काम हैं करने को। इसलिए तुम्हारे पास किसी के
बहाने सुनने का वक्त नहीं है।
-स्तन व हार्मोन्स के होते हुए भी तुम्हारे जीवन के कुछ लक्ष्य हैं और तुम
महत्त्वाकांक्षी हो। गोया कि सिर्फ पुरुषों की ही होती है यौन आकंक्षा, तुम्हारी नहीं।
-तुमने अपने पिछले बॉयफ्रेंड या पति को इसलिए छोड़ दिया क्योंकि उसने
तुम्हारे ‘आत्मसम्मान’ को ठेस पहुंचाई
थी।
-तुम
अपनी ज़िंदगी अपनी शर्तों पर जीना चाहती हो।
-तुम्हें
समझौते के नाम पर अपने आत्म को खत्म करते हुए जीना गवारा नहीं है।
हाल ही में, अभिनेत्री, निर्देशक
और रॉकस्टार श्रुति हसन ने ‘अनब्लश’ के
बैनर तले एक विडियो ‘बी द बिच’ लांच
किया। इस विडियो में श्रुति ने महिलाओं की उन खासियत को उजागर किया, जो उन्हें मर्दों के अनुसार ‘बिच’ यानी कुतिया बनाती है। कहा जाता है कि नियति बदली जा सकती है अगर नीयत बदल
दी जाए, मगर पुरुषों के इस माइंडसेट को बदलना इतना आसान नहीं
है।
आज
हम बड़ी आसानी से कह देते हैं कि महिलाएं तो अब बहुत सशक्त हो चुकी हैं, तभी तो हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। मगर इसके लिए उसने कितनी कुर्बानी
दी है, मालूम भी है आपको?। रात-रात भर
जाग कर पढ़ी हैं वो। उसने खुद को काबिल बनाया है। उसके संघर्ष में पुरुषों ने साथ
नहीं दिया। वे अकेली लड़ी हैं आगे बढ़ने के लिए। फिल्म, फैशन
वर्ल्ड और कॉरपोरेट से लेकर साहित्य व मीडिया तक, पुलिस और
प्रशासनिक सेवाओं से लेकर मेडिकल और इंजीयिरिंग तक वे अपनी प्रतिभा से पहुंची हैं।
आज जब वह अपने हिस्से की दुनिया जीना चाहती हैं, तो पुरुष
उन्हें पितृसत्ता की आड़ में कठपुतली की तरह नचाना चाहते हैं। कमाल है! मेहनत हम
करें और जीवन भर के लिए आपके गुलाम हो जाएं.....! न भाई ये हम से न होगा। जो करना
है कर लो, हम अपने मन की जिएंगे।
औरतों
को कुतिया कहने वालो को कहो-थैंक यू
सवाल यह है कि आप....जी हां पितृसत्तात्मक सोच रखने वाले आपलोगों से ...
चाहे औरत हों या मर्द, ..... दोनों ही कितने तैयार हैं-
हमारे सशक्त रूप को स्वीकार करने के लिए? अब आप कहेंगे कि
भला हमने कब रोका है? तो जनाब ये बताइए कि ऐसे शब्दों से
उन्हें आगे बढ़ने भी तो नहीं दिया है। आपने गाली देकर महिला सशक्तीकरण के लिए बरसों
चले संघर्ष का मजाक ही तो उड़ाया है।
बहरहाल, इन सब
हालातों से निपटने के लिए अपने विडियो से श्रुति ने नजरिए को बदलने की बात कही है,
जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में एकदम सही और सटीक है। अब किसी की सोच
तो बदली नहीं जा सकती, इसलिए क्यों न हम अपने ही नजरिए को
बदल लें। क्योंकि हमें आगे बढ़ना है, रुकना नही है। ....... तो
अगर कोई हमें ‘बिच’ कहे, तो हम उन्हें हंस कर जवाब दें - थैंक यू।
स्वाती सिंह
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