सदियों से हम जिस दुनिया के बाशिंदे हैं, उसमें समय
के बदलाव के साथ मनुष्यों ने अब अपना एक नया ‘राष्ट्र’
बना लिया है। यह एक ऐसा काल्पनिक राष्ट्र है, जिसकी
कोई सरहद नहीं। इसे बने हुए अभी ज्यादा समय भी नहीं बीता है, लेकिन इसकी जनसंख्या अब एक अरब से भी ज्यादा हो चुकी है, जो इसे चीन और भारत के बाद तीसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश का दर्जा
प्रदान करती है। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि इस संख्या तक पहुंचने में आधुनिक मानव
को दो लाख वर्ष लगे हैं।
वर्तमान
समय में इंटरनेट की इस दुनिया ने सूचना व ज्ञान के प्रसार में अहम भूमिका निभाई
है। इंटरनेट की सकारात्मक भूमिका को आंकने के लिए किए गए सर्वेक्षणों में ये तथ्य
सामने आए हैं कि इंटरनेट वूमन एम्पॉवरमेंट का एक अदृश्य लेकिन सशक्त माध्यम बनता
जा रहा है। इस माध्यम से जहां एक ओर महिलाओं के लिए आर्थिक संभावनाओं के द्वार
खुले हैं,
वहीं दूसरी ओर इसने सोशल मीडिया के जरिए उन्हें अपने विचार अभिव्यक्त
करने का एक मंच भी दिया है। हाल ही में हुए कुछ सर्वे बताते हैं कि इंटरनेट उपयोग
करने वाली महिलाओं में से आधी ने ऑनलाइन नौकरी के लिए अप्लाई किया और करीब एक
तिहाई ने इस माध्यम से अपनी आय में वृद्धि भी की है।
भारत
में तीन साल पहले महिलाओं ने पैल्ली पूला जादा नामक ऑनलाइन स्टोर शुरू किया था, जिसमें अब
करीब 200 से अधिक महिलाएं कार्यरत हैं। शोध बताते हैं कि जिन
देशों में आय और शिक्षा के क्षेत्र में कम असमानता होती है, वहां
बाल मृत्यु दर कम व आर्थिक विकास की दर अधिक होती है। महिलाएं इंटरनेट से प्राप्त
मंचों की सहायता से अपने और समाज से जुड़े तमाम मुद्दों पर अपनी बुलंद आवाज पूरी
दुनिया को सुनाने में सक्षम हैं। कांगो में महिलाओं ने अपने अनुभव साझा करने के
लिए इंटरनेट कैफे खोले और देश के युद्धग्रस्त क्षेत्रों के लिए संयुक्त राज्य
अमेरिका के विशेष दूत की नियुक्ति करवाने में सफल हुर्इं। इसी तरह केन्या में
महिलाओं ने लैंगिक भेदभाव और हिंसा का सामना करने के लिए इंटरनेट का सहारा लिया।
उन्होंने पीड़ितों के समर्थन में ग्रुप बनाया और लीगल चेंज की मांग की।
ब्राजील
में महिलाओं ने ‘आई विल नॉट शट अप’ नामक ऐप बनाया जो महिलाओं पर होने
वाले हमलों पर नजर रखता है। बांग्लादेश में महिलाएं ‘माया’
नामक ऐप से लाभान्वित हो रही हैं। ये ऐप स्वास्थ्य से लेकर कानूनी
मामलों तक हर प्रकार के सवालों का जवाब देता है। इससे दूर-दराज के क्षेत्रों की
महिलाओं को एक्सपर्ट्स की सलाह मिल जाती है।
इंटरनेट
की इस दुनिया ने वो काम कर दिखाया है, जिसे कई देशों की सरकारें
नहीं कर पार्इं। यह अब एक ऐसी नई दुनिया बन कर उभरा है, जहां
लिंग व जाति से परे ‘सब बराबर’ हैं और
निरंतर विकास की दिशा में एक साथ आगे बढ़ रहे हैं।
लेकिन
दुर्भाग्य की बात है कि अनेक लाभों के बावजूद इंटरनेट तक महिलाओं की पहुंच न केवल
पुरुषों की तुलना में बेहद सीमित है बल्कि यह चुनौतीपूर्ण भी है। क्योंकि उन्हें
इस दुनिया में भी उन तमाम हिंसाओं का सामना करना पड़ रहा है, जिनसे वे
अपने समाज या गली-चौराहों में दो-चार होती हैं। यहां उल्लेखनीय है फेसबुक का एक
ग्रुप ब्लोक्स एडवाइस जो मई में शुरू हुआ, उसकी हरकत से आज
पूरा सभ्य समाज शर्मसार है। दो लाख पुरुष सदस्यों का यह समूह बलात्कार की
बुराइयों के बारे में नहीं बल्कि उसकी अच्छाइयों पर चर्चा करता है। ये पुरुष बताते
हैं कि लड़की का किस तरह रेप किया जाए। किस तरह उसकी मर्जी के खिलाफ उससे एनल सेक्स
किया जाए और दूसरे मर्द उन बातों के मजे लेते हैं। उसमें अपने अनुभव जोड़ते हैं।
यह
सीक्रेट ग्रुप आस्ट्रेलिया में शुरू हुआ था। इस पेज के बारे में लोगों को तब पता
चला,
जब राइटर क्लीमेंटीन फोर्ड ने अपने फेसबुक पेज से इस समूह के कुछ
स्क्रीनशॉट पोस्ट किए। इस ग्रुप में बहुत कुछ लिखा पाया गया। देखिए उसके दो नमूने:
-
-‘औरतों को
अगर हमारे साथ सेक्स न करना हो, तो वो हमसे मीटर भर दूर ही
रहें।’
यह
पहली बार नहीं है,
जब ग्रुप की चर्चा हो रही है। मई में, जब यह
ग्रुप शुरू हुआ था, तब मीडिया में इसका जिक्र हुआ था। इसे
शुरू करने वाले ब्रोक पॉक ने डेली टेलीग्राफ को बताया था कि यह ग्रुप मर्दों ने
एक-दूसरे को सहारा देने के लिए बनाया है। ‘हमने ग्रुप के कुछ
नियम बनाए हैं और जो उन्हें तोड़ता है, हम उसे ग्रुप से निकाल
देते हैं। हम ये चाहते हैं कि जो बातें पुरुष किसी से नहीं कह पाते, वो आपस में कह सकें। हम टीशर्ट बनाते हैं और उन्हें बेच कर मिले पैसों को
चैरिटी में दे देते है।’
इस
घिनौनी सोच से इंटरनेट पर महिलाओं की सुरक्षा का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह
विचारणीय है कि अगर यह चैरिटी रेप का ‘आनंद’ लेकर
होती है, तो ऐसी चैरिटी की किसी को जरूरत नहीं है। बात यह
नहीं कि ये प्रो-रेप बातें किसी सीक्रेट ग्रुप में कही जा रही हैं, तो इनसे कोई नुकसान नहीं होगा। मुद्दा यह है, कि ये
कैसी सोच है लोगों की, जिसमें यौन हिंसा पर मजे लिए जाते हैं?
हो
सकता है आप कहें कि ये तो सिर्फ बातें हैं। आप ये भी कह सकते हैं कि ऐसी बातें करने वाले लोगों का यह
एक छोटा समूह है। सारे मर्द ऐसे नहीं होते। जी हां, सभी मर्द ऐसे नहीं होते,
लेकिन दो लाख की संख्या कोई छोटी नहीं होती। सोचिए, इस सोच वाले मर्द दुनिया में घूम रहे हैं। और जाहिर है कि इंटरनेट के
माध्यम से इनकी संख्या बढ़ती ही जाएंगी और ये मर्द हमारे आस-पास ही होंगे, अलग-अलग रूप में। आखिर इनकी भी बेटियां होंगीं, पत्नियां
होंगीं। आज जब ये गैंग रेप जैसी अमानवीय यौन हिंसा पर मजे ले सकते हैं, तो कल ये ऐसा सच में होते हुए देख कर भी चुप ही रहेंगे।
कोई
दो राय नहीं कि सेक्स की फंतासी सभी करते हैं, लेकिन रेप सेक्स नहीं होता।
सेक्स यानी संयोग तो वह होता है, जिसमें दोनों पार्टनर की
मर्जी हो और दोनों समान रूप से भोग (आनंद)
कर रहे हों। वो नहीं जिसमें मर्द औरत पर जानवर की तरह सवार हो और औरत रो रही हो।
यह किसी की भी फंतासी का हिस्सा कैसे हो सकती है? जिस समाज
में ऐसे ग्रुप चल रहे हों, वहां की महिलाएं सुरक्षित कैसे
महसूस कर सकती हैं।
औरतें
कैसे सेफ महसूस कर सकती हैं जब उन्हें लगे कि बसों, पार्कों, सुनसान जगहों या फिर मॉल में उनके सामने खड़ा मर्द उनके साथ रेप करने के
बारे में सोच रहा है। और ऐसा न कर पाने की सूरत में किसी वेबसाइट पर उसे अपनी
कल्पना में लाकर उसके साथ बलात्कार करेगा। पोर्न साइटों पर रोज-हर पल अस्मत लूटी
जाती है। इस रेप कल्चर की सच्चाई सचमुच भयावह है और सबसे ज्यादा डरावनी है इंटरनेट
पर आधी दुनिया के लिए ऐसी हिंसा की साजिशें, जो निरंतर चल
रही हैं। पुरुषों की कल्पना में हर दिन जिस तरह स्त्रियां रौंदी जा रही हैं,
उसकी चिंता करने का नहीं अब उससे कानूनी तरीके से निपटने का वक्त आ
गया है।
स्वाती सिंह
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